के विधानसभा चुनाव में अशोक चव्हाण ने महाराष्ट्र के नांदेड़ के भोकार
विधानसभा सीट से जीत हासिल की थी. उनकी जीत के बाद निर्दलीय उम्मीदवार
माधवराव किन्हालकर ने उनके ख़िलाफ़ पेड न्यूज़ की शिकायत की थी.
इस
शिकायत में कहा गया था कि लोकमत अख़बार में अशोक पर्व नाम से सप्लीमेंट छपे थे, जिनके भुगतान की जानकारी अशोक चव्हाण ने अपने चुनावी ख़र्च में नहीं बताई थी.
उस वक़्त 'द हिंदू' अख़बार के पत्रकार पी साईनाथ ने अशोक चव्हाण के चुनावी ख़र्चे की जानकारी पर लगातार रिपोर्टिंग की थी. उन्होंने तब ख़बरों में लिखा था कि जिस तरह का कवरेज अशोक चाव्हाण को मिला और
उन्होंने जिस तरह का ख़र्च दिखाया है, उसमें तालमेल नहीं दिखता.
दिलचस्प
ये है कि महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने अपने चुनावी
ख़र्च की घोषणा में बताया था कि उन्होंने अख़बार में विज्ञापन के लिए महज
5379 रुपये ख़र्च किए थे जबकि केबल टेलिविजन पर उन्होंने महज 6000 रुपये ख़र्च किए थे.
जबकि प्रेस काउंसिल की पेड न्यूज़ की जांच करने वाली कमिटी ने पाया था कि सिर्फ़ लोकमत अख़बार में अशोक चव्हाण के पक्ष में 156 पेजों का विज्ञापन
छापा गया था. चुनाव आयोग ने चव्हाण को 20 दिनों के भीतर जवाब देने के लिए
'कारण बताओ' नोटिस जारी किया था.
हालांकि ये मामला भी हाईकोर्ट होते
हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. ये मामला इसलिए भी सुर्खियों में रहा था
क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अशोक चव्हाण की याचिका को ख़ारिज़ करते हुए चुनाव आयोग के अधिकार में किसी तरह के दख़ल देने से इनकार कर दिया था.
वैसे
इस मामले में 13 सितंबर, 2014 को दिल्ली हाईकोर्ट ने अशोक चव्हाण को पेड न्यूज़ के आरोपों से बरी कर दिया था. दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था कि ये विज्ञापन अशोक चव्हाण की ओर से ही दिए गए थे, ये बात साबित
नहीं हो पाई है. अपने फ़ैसले में हाईकोर्ट ने ये कहा था कि संदेह का लाभ अशोक चव्हाण को दिया जा रहा है.
इन उदाहरणों से ये ज़ाहिर होता है कि
पेड न्यूज़ के किसी भी मामले को साबित करना बेहद मुश्किल है. इसकी वजह
बताते हुए परंजॉय गुहा ठाकुरता कहते हैं, "पेड न्यूज़ में किसी को कोई रसीद
नहीं मिलती, चेक से भुगतान नहीं होता है, इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजेक्शन नहीं
होता. लिहाजा इसे साबित करना मुश्किल होता है. इसमें पैसों का लेन-देन वैध
तरीके से होता नहीं है. इसे प्रमाणित करना आसान काम नहीं है. ये काम चुनाव
आयोग का है भी नहीं."मरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने
मंगलवार को व्हाइट हाउस में दिवाली समारोह की मेज़बानी की. लेकिन अपने
ट्विटर अकाउंट पर दिवाली के बधाई संदेश में उन्होंने कुछ ग़लतियां कर दीं
जिसकी वजह से उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल किया जाने लगा.
दिवाली को
हिंदुओं का प्रमुख त्योहार बताने के लिए उन्हें दो कोशिशें करनी पड़ीं.
मंगलवार को उन्होंने दो ट्वीट किए, जिसमें दूसरे ट्वीट में ही उन्होंने हिंदुओं का ज़िक्र किया.
इस ट्वीट में ट्रंप ने दिवाली को बौद्धों, सिखों और जैनों का त्योहार
बताया और हिंदुओं का ज़िक्र नहीं किया. उन्होंने लिखा, "आज हम दिवाली के लिए जमा हुए हैं जिसे अमरीका और दुनिया भर में बौद्धों, सिखों और जैनों की
ओर से मनाया जाता है. लाखों लोग परिवार और दोस्तों के साथ दिया जलाकर नए साल की शुरुआत करने के लिए जमा हुए हैं."
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